फसल चक्र एक विधि है, जिसमें एक खेत में हर सीजन में अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, कीटों और बीमारियों का खतरा कम होता है और फसल उत्पादन बेहतर होता है। उदाहरण के लिए यदि एक साल गेहूं की फसल उगाई गई है, तो अगले साल दाल या दलहनी फसल उगाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा संतुलित बनी रहती है।
फसल चक्र के फायदे
मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है अलग-अलग फसलें उगाने से मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्व संतुलित रहते हैं। कीट और बीमारियों का नियंत्रण होता है। एक ही प्रकार की फसल लगातार उगाने से कीट और बीमारियां बढ़ जाती हैं, लेकिन फसल चक्र अपनाने से यह समस्या कम होती है। जैव विविधता बनी रहती है। अलग-अलग फसलें उगाने से खेतों में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव और लाभदायक जीवाणु पनपते हैं। पानी की बचत होती है। अलग-अलग फसलें उगाने से सिंचाई की मांग भी नियंत्रित रहती है। मिट्टी के कटाव को रोकता है। फसल चक्र से मिट्टी की संरचना मजबूत बनी रहती है और जल कटाव कम होता है। उत्पादन लागत में कमी। कम उर्वरक और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिससे किसानों की लागत घटती है। बेहतर पैदावार और लाभ। मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहने से फसल की पैदावार अधिक होती है, जिससे किसान को अधिक मुनाफा होता है।
फसल चक्र कैसे अपनाएं?
– सबसे पहले यह जानें कि आपकी भूमि किस प्रकार की है और उसमें कौन-कौन से पोषक तत्व उपलब्ध हैं।
– मिट्टी के अनुसार ऐसी फसलें चुनें जो एक-दूसरे की उर्वरता में योगदान दें।
– जैसे एक सीजन में गेहूं या धान के बाद मूंग, मसूर, या चना जैसी दलहनी फसलें उगाएं।
– प्रत्येक वर्ष के लिए यह तय करें कि कौन-सी फसल कब और कैसे उगानी है।
– फसल चक्र में विविधता लाने के लिए 3-4 वर्षों के अंतराल पर नई योजनाएं बनाएं।
– इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और रासायनिक खादों की आवश्यकता कम होती है।
– पुराने फसल अवशेषों को न जलाएं, बल्कि जैविक खाद के रूप में उपयोग करें।
फसल चक्र एक प्रभावी और वैज्ञानिक विधि है, जिससे न केवल खेती की उत्पादकता बढ़ती है, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है। इसे अपनाने से किसानों की लागत घटती है और उनकी आय में वृद्धि होती है। यदि सही तरीके से फसल चक्र अपनाया जाए, तो यह मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और स्थायी कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने में सहायक होता है।
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