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भारत में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या ज्यादा होने के कारण उन किसानों पर हर फसल के अच्छे उत्पादन होने का दबाव बना रहता है। क्योंकि किसानों के पास उनकी फसल के अतरिक्त आय का कोई दूसरा साधन नहीं रहता। इसलिए किसान हर फसल का अच्छा उत्पादन चाहता है। अच्छे उत्पादन की लालसा से किसान बड़ी मात्रा में अपने खेत में रासायनिक खाद उर्वरक का उपयोग करना शुरू कर देते है। जिससे तुरंत में उन्हें अच्छी उपज प्राप्त होने लगती हैं। जिससे किसान की तात्कालिक आवश्यकता की पूर्ति आसानी से होने लगती है। इस प्रकार के रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करके किसान अपने खेत की मिट्टी को धीरे धीरे खराब कर लेते हैं। जिससे किसान को दीर्घकालिक नुकसान होता है। ओर धीरे धीरे उनके खेत के उत्पादन में कमी आने लगती है। इसलिए किसान जैविक खेती जैसी कृषि पद्धतियों को अपना सकते है।

जैविक खेती
जैविक खेती को अंग्रेजी में ऑर्गेनिक फार्मिंग कहते हैं। यह एक कृषि पद्धति है। जिसमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशको के प्रयोग से बचा जाता है। इस प्रकार की खेती करने से मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती हैं। जैविक खेती में रासायनिक उर्वरक का प्रयोग न करके हरी खाद, वर्मिकपोस्ट आदि खादों का प्रयोग किया जाता हैं। खेतों में आजकल भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरक का उपयोग होने लगा है। जिससे मिट्टी खराब हो रही है। जैविक खेती करके एक और हम अपनी मिट्टी को बचा सकते हैं और दूसरी ओर इससे उत्पादित उत्पाद मानव के लिए स्वास्थ्यवरदक होते है। किसी भी प्रकार के केमिकल्स का उपयोग न करके हम अपने भोजन को स्वस्थ बना सकते हैं। जैविक खेती करके हम अपने पर्यावरण को भी सुरक्षित कर सकते हैं। क्योंकि जैविक खेती में हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं होता है।

जैविक खेती के कई फायदे हैं।

जैविक खेती से पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है।
जैविक खेती करने से किसान के खेत की मिट्टी खराब नहीं होती है।
वर्मीकंपोस्ट के उपयोग से मृदा की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है।
जैविक खेती करने से फसल पर लगने वाली कॉस्ट कम जाती है।
जैविक खेती से प्राप्त उत्पाद मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद रहते हैं।
कोरोना के बाद से जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है इससे किसान अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं क्योंकि जैविक उत्पाद का मूल्य बाजार में अधिक होता है।जैविक उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी आसानी से बेचा जा सकता है। क्योंकि विदेश में जैविक उत्पादों की अधिक मांग है।


जैविक खेती के नुकसान

जैविक उर्वरकों को बनाने में अधिक समय लगता है।

प्रतिकूल मौसम और कीटों के कारण इसमें नुकसान होने की भी अधिक संभावना होती है।

कई बार जैविक नियंत्रण अधिक असरदार ना होने के कारण किसानों को अधिक आर्थिक हानि हो सकती है।

जैविक उर्वरक बनाने का किसानों को सही ज्ञान नहीं होता जिसके कारण वह सही तरीके से उर्वरक निर्माण करने में असमर्थ होते हैं।

जैविक खेती के प्रकार।

जैविक खेती के दो प्रकार होते है।

  1. शुद्ध जैविक खेती – इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं किया जाता। इसमें प्राकृतिक रूप से तैयार उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।
  2. एकीकृत जैविक खेती – एकीकृत जैविक खेती में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन और एकीकृत कीट प्रबंधन शामिल है।

यकीनन जैविक खेती दीर्घकालीक सोच के हिसाब से की जाए एवं अधिक रकबे में की जाए तो यह किसान के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकती है। भारत में ज्यादातर छोटे एवं सीमांत किसान है इसलिए किसान जैविक खेती करने का अधिक रिस्क नहीं लेते हैं। जैविक खेती में प्रारंभिक कुछ वर्षों में ज्यादा उत्पादन नहीं होता है। जिससे छोटे किसान निराश हो जाते हैं और वह जैविक खेती छोड़ देते हैं। सरकार के द्वारा चलाई जा रही जैविक खेती को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रमों का भी किसानों को सही तरीके से ज्ञान नहीं हो पाता है। यह भी एक कारण है कि किसान जैविक खेती की ओर कम आकर्षित हो रहे हैं। ऐसी ही खेती से जुड़ी और भी रोचक बाते जानने के लिए जुड़े रहिए ebhijuka.bharatagrolink.com से।

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