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यह छोटा सा रोग आपके पशु की ले लेगा जान, जानें बचाव और उपायखुरपका-मुंहपका रोग पशुओं में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह मुख्य रूप से गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सुअर आदि को प्रभावित करता है। यह रोग बहुत तेजी से फैलता है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो इससे पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है। इस रोग के कारण दूध उत्पादन में भारी कमी आ सकती है। इससे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। यह पिकॉर्ना वायरस के कारण होता है। यह वायरस पशुओं के शरीर के मुख, खुर, थन और अन्य संवेदनशील भागों पर असर डालता है।

रोग के लक्षण


खुरपका-मुंहपका रोग के लक्षण संक्रमण के 2-5 दिनों के भीतर दिखाई देने लगते हैं। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं –
– मुंह में छाले और घाव।
– अधिक मात्रा में लार टपकना।
– चबाने और चारा खाने में कठिनाई।
– जीभ और मसूड़ों में सूजन।
– खुरों में छाले और सूजन।
– खुरों के बीच में लालिमा और दर्द।
– खुरों से खून निकलना।
– पशु का लंगड़ाना या चलने में परेशानी।
– तेज बुखार आना।
– कमजोरी और सुस्ती।
– दूध उत्पादन में भारी गिरावट।
– सांस लेने में तकलीफ।
– शरीर में कंपन और ठंड लगना।

रोग कैसे फैलता है?
– संक्रमित पशु के संपर्क में आने से।
– संक्रमित लार, मूत्र, दूध और गोबर के संपर्क में आने से।
– संक्रमित चारा या पानी के सेवन से।
– संक्रमित उपकरण, खुर सफाई के औजार और बाड़े से।
– हवा के माध्यम से 5-10 किलोमीटर तक फैल सकता है।

खुरपका-मुंहपका रोग का इलाज
इस रोग का कोई विशेष इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों के आधार पर निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं –
– बुखार कम करने के लिए एनाल्जेसिक और एंटीपायरेटिक दवाएं दें।
– दर्द और सूजन के लिए एन्टी-इंफ्लेमेटरी दवाओं का प्रयोग करें।
– घाव को साफ करने के लिए पोटैशियम परमैंगनेट या डिटॉल के घोल का उपयोग करें।
– प्रभावित हिस्से पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं।
– पशु को नरम और पौष्टिक आहार दें।
– अधिक मात्रा में ताजा पानी उपलब्ध कराएं।
– मुंह के छालों के लिए ग्लिसरीन और बोरिक पाउडर का मिश्रण लगाएं।
– संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें।
– संक्रमित स्थान और उपकरणों को सोडियम हाइपोक्लोराइट या फिनाइल से साफ करें।
– स्वस्थ पशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए टीकाकरण करें।

खुरपका-मुंहपका रोग से बचाव
इस रोग से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण और स्वच्छता का पालन करना सबसे जरूरी है।
– खुरपका-मुंहपका रोग से बचाव के लिए 6 महीने की आयु के बाद टीका लगवाएं।
– उसके बाद हर 6 महीने में दोबारा टीका लगवाएं।
– गर्भवती पशुओं को टीका लगवाने से बचें।
– पशुओं के रहने के स्थान को नियमित रूप से साफ करें।
– संक्रमित पशु के संपर्क में आए उपकरणों को अच्छी तरह से साफ करें।
– गोबर और मूत्र को तुरंत हटाएं।
– चारा और पानी को स्वच्छ रखें।
– संक्रमित पशु को स्वस्थ पशुओं से दूर रखें।
– बीमार पशु के संपर्क में आए लोगों और उपकरणों को साफ करें।
– नए पशु को झुंड में शामिल करने से पहले जांच कराएं।

खुरपका-मुंहपका रोग पशुपालकों के लिए एक गंभीर समस्या है, जिससे दूध उत्पादन और पशु स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। लेकिन समय पर टीकाकरण और उचित देखभाल से इस रोग को रोका जा सकता है। ऐसी ही और जानकारी के लिए जुड़े रहिए https://ebijuka.com/ से।

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