पर्यावरण और कृषि, दोनों ही ऐसे क्षेत्र हैं जो परस्पर जुड़े हुए हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि खेतों में जो फसल लहलहाती है, उसमें मधुमक्खी, तितली या भौंरे जैसे छोटे जीवों की क्या भूमिका है?
परागणकर्ता जीव (Pollinators) बिना वेतन के काम करने वाले वो प्राकृतिक मजदूर हैं जो खेती को सफल बनाते हैं। इनका संरक्षण सिर्फ पर्यावरण की नहीं, हमारी आर्थिक और खाद्य सुरक्षा का भी सवाल है।
परागण क्या है और ये जीव क्यों ज़रूरी हैं?
परागण (Pollination) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें फूलों में उपस्थित परागकण, एक फूल से दूसरे फूल तक पहुंचते हैं। इससे बीज और फल बनने की प्रक्रिया शुरू होती है।
75% से अधिक फसलों की उत्पादकता परागण पर निर्भर करती है, जिनमें शामिल हैं –
टमाटर, सेब, आम, मिर्च, सूरजमुखी, बादाम, कपास, मसाले, और कई तरह की दालें।
प्रमुख परागणकर्ता जीव
जीव | कार्य | विशेषता |
---|---|---|
🐝 मधुमक्खी | सबसे प्रभावी परागणकर्ता | खेत की 80% परागण में सहायक |
🦋 तितली | फूलों से पराग इकट्ठा कर फैलाना | दिन में सक्रिय |
🐦 पक्षी | विशेषतः हमिंग बर्ड | लम्बे फूलों में परागण |
🦇 चमगादड़ | रात्रिकालीन परागण | फलदार वृक्षों में सहायक |
🐞 भौंरे | गहरी गुहा वाले फूलों के लिए | ज़्यादा गहराई में जाकर परागण |
क्या कहते हैं आंकड़े?
- FAO (UN) रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की 100 प्रमुख खाद्य फसलों में से 71 फसलें परागण पर निर्भर हैं।
- परागणकर्ताओं की मदद से कृषि उत्पादकता में 30% से 70% तक बढ़ोतरी संभव है।
- वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था में परागणकर्ताओं का योगदान $235 से $577 बिलियन डॉलर के बीच आंका गया है।
खतरे में हैं परागणकर्ता – क्यों घट रही है संख्या?
पिछले 20 वर्षों में परागणकर्ताओं की संख्या में 40% से अधिक गिरावट देखी गई है। इसके मुख्य कारण:
- कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग
- Neonicotinoid जैसे रसायन मधुमक्खियों को भ्रमित करते हैं और मार देते हैं।
- प्राकृतिक आवासों का विनाश
- खेतों के आसपास फूलों और झाड़ियों की कमी से परागणकर्ताओं को भोजन नहीं मिल पाता।
- एकल फसल प्रणाली (Monoculture)
- विविधता की कमी से कीट आकर्षित नहीं होते।
- जलवायु परिवर्तन और तापमान असंतुलन
- बदलते मौसम के कारण इनके जीवन चक्र प्रभावित हो रहे हैं।
- प्रदूषण और शहरीकरण
- कीटों का पर्यावरण नष्ट हो रहा है।
समाधान: परागणकर्ताओं का संरक्षण कैसे करें?
1. जैविक खेती (Organic Farming) को अपनाएं
- रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक विकल्प अपनाएं जैसे नीम तेल, ट्राइकोडर्मा आदि।
2. फूलदार पौधों को खेतों में लगाएं
- खेतों के किनारे गेंदा, सूरजमुखी, तुलसी, सेज, अलसी आदि पौधों को लगाएं।
3. मधुमक्खी पालन (Apiculture) को बढ़ावा दें
- इससे शहद और मोम उत्पादन के साथ-साथ परागण भी बढ़ेगा।
4. स्थानीय प्रजातियों को बचाएं
- देशी मधुमक्खियाँ अधिक टिकाऊ और उपयोगी होती हैं।
5. पर्यावरण शिक्षा और किसान प्रशिक्षण
- किसानों को प्रशिक्षण देकर परागणकर्ताओं के महत्व की जानकारी दी जाए।
केरल और महाराष्ट्र में कई किसानों ने मधुमक्खी पालन से अपनी उपज में 40% तक की बढ़ोतरी दर्ज की है।
निष्कर्ष
परागणकर्ता हमारे खेतों के गुप्त नायक हैं। इन्हें बचाना सिर्फ एक जैविक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि स्मार्ट खेती का हिस्सा है। यदि हम आज कदम नहीं उठाते, तो कल हमारी थाली में भोजन की विविधता नहीं रहेगी।
“एक फूल की रक्षा, सौ फसलों की सुरक्षा!” 🌼
आइए, मिलकर इस “ग्रीन अफेयर” को आगे बढ़ाएं।
क्या आप तैयार हैं परागणकर्ताओं की रक्षा में हिस्सा लेने के लिए?
अपने खेत में एक फूलों की पट्टी लगाइए – और फर्क देखिए!