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आज की आधुनिक खेती में टिकाऊ और जैविक तरीकों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाया है और किसानों को आर्थिक बोझ के नीचे दबा दिया है। ऐसे में माइकोराइज़ल फंगस (Mycorrhizal Fungus) एक ऐसी जैविक तकनीक है जो मिट्टी की उर्वरता को प्राकृतिक रूप से बढ़ाती है और फसलों की वृद्धि में सहायता करती है।

माइकोराइज़ल फंगस क्या है?

माइकोराइज़ल फंगस एक प्रकार की लाभकारी कवक (Fungi) है जो पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी (Symbiotic) संबंध बनाती है। यह कवक जड़ों से जुड़कर मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों और पानी को पौधे तक पहुँचाने में मदद करती है। बदले में, पौधा इस कवक को कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोज़) प्रदान करता है।

माइकोराइज़ा का अर्थ:

“माइको” का अर्थ है “फंगस” और “राइज़ा” का मतलब है “जड़ें”, यानी “फफूंद-जड़ सहजीविता”

माइकोराइज़ल फंगस के प्रकार

माइकोराइज़ल फंगस मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं:

(i) एंडोमायकोराइज़ा (Endomycorrhiza)

  • यह फंगस जड़ों के भीतर प्रवेश कर जाती है।
  • विशेष रूप से ग्लोमस (Glomus) प्रजातियाँ कृषि में उपयोगी हैं।
  • अधिकांश खेती की फसलें (गेहूं, धान, सब्ज़ियाँ) इससे लाभान्वित होती हैं।

(ii) एक्टोमायकोराइज़ा (Ectomycorrhiza)

  • यह जड़ों की सतह पर रहती है और जड़ों को बाहर से घेरती है।
  • यह अधिकतर वृक्षों (जैसे चीड़, ओक) में पाई जाती है।

3. कृषि में माइकोराइज़ल फंगस के फायदे

1. पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाना

  • फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, जिंक, कॉपर जैसे तत्वों को जड़ों तक पहुँचाती है जो सामान्य रूप से पौधों को कठिनाई से मिलते हैं।

2. जल संरक्षण में सहायता

  • कवक का जाल मिट्टी में पानी को लंबे समय तक रोके रखता है जिससे सूखा प्रतिरोध बढ़ता है।

3. उर्वरकों की आवश्यकता कम करना

  • रासायनिक खाद की मात्रा घटती है जिससे लागत कम होती है और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचता।

4. रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि

  • जड़ों की संरचना मजबूत होती है जिससे फफूंदी और अन्य मिट्टी जनित रोगों से सुरक्षा मिलती है।

5. मिट्टी की संरचना में सुधार

  • माइकोराइज़ल कवक मिट्टी को भुरभुरी बनाती है जिससे वायु और जल संचरण बेहतर होता है।

6. पौधे की वृद्धि और उत्पादन में बढ़ोतरी

  • फसल का विकास बेहतर होता है और उत्पादन में 10% से 30% तक की वृद्धि देखी गई है।

4. माइकोराइज़ल फंगस का उपयोग कैसे करें?

📌 बीजोपचार:

  • फंगस को बीज के साथ मिलाकर बोआई से पहले उपचार करें।

📌 रोपण के समय:

  • नर्सरी पौधों की जड़ों के पास माइकोराइज़ा पाउडर डालें।

📌 ड्रिप या सिंचाई में मिलाकर:

  • तरल रूप में उपलब्ध माइकोराइज़ा को ड्रिप सिंचाई के साथ दिया जा सकता है।

मात्रा:

  • 2-5 किलोग्राम प्रति एकड़ पाउडर रूप में या 500 मिली–1 लीटर प्रति एकड़ तरल रूप में।

5. किन फसलों के लिए उपयोगी?

माइकोराइज़ल फंगस लगभग सभी प्रकार की फसलों में उपयोगी है:

फसलेंउपयोगिता
गेहूं, चावलउच्च पोषक तत्व अवशोषण
टमाटर, मिर्चजल संरक्षण और रोग नियंत्रण
केला, नारियलजड़ वृद्धि और उपज वृद्धि
फूल और औषधीय पौधेमिट्टी स्वास्थ्य में सुधार

6. शोध और वैज्ञानिक प्रमाण

  • ICAR – Indian Institute of Soil Science के अनुसार, माइकोराइज़ा के उपयोग से फॉस्फोरस की आवश्यकता 25-50% तक कम की जा सकती है।
  • National Center for Biotechnology Information (NCBI) के अनुसार, माइकोराइज़ा के उपयोग से पौधों में सूखा और रोग प्रतिरोध में वृद्धि देखी गई है।
  • कई कृषि विश्वविद्यालयों और जैविक खेती संस्थानों ने इसे जैविक खेती में अनिवार्य तत्व माना है।

7. निष्कर्ष

माइकोराइज़ल फंगस न केवल कृषि को अधिक उत्पादक और टिकाऊ बनाती है, बल्कि यह किसानों की लागत भी कम करती है। यह तकनीक विशेष रूप से जैविक और प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। आने वाले समय में यह कृषि में एक अहम भूमिका निभाएगी।

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