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उड़द एक प्रमुख दलहन फसल है। इसका उपयोग दाल, पापड़, बड़ा और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को बनाने में किया जाता है। यह खरीफ की फसल है। इसे मुख्य रूप से मानसून के मौसम में लगाया जाता है। उड़द की खेती से मिट्टी की उर्वरता में भी वृद्धि होती है।

उपयुक्त जलवायु

उड़द की खेती के लिए समशीतोष्ण से उष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। उड़द के पौधों के लिए 20°C से 30°C का तापमान सही होता है। फसल की अच्छी वृद्धि के लिए 100-150 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा और जलभराव से फसल को नुकसान हो सकता है।

उपयुक्त मिट्टी

उड़द की खेती के लिए दोमट और काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। भूमि में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

खेत की तैयारी

खेत की मिट्टी को 2-3 बार जुताई करके भुरभुरा बना लें। अंतिम जुताई के समय 10-12 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद मिलाएं। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। अधिक जलभराव से पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।

बीज उपचार

बीजों को बोने से पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। 2 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति किलो बीज की दर से मिलाएं।

बुवाई का समय

खरीफ सीजन में जून के अंत से जुलाई के मध्य तक। रबी सीजन में नवंबर के अंत से दिसंबर के मध्य तक सिंचित क्षेत्रों में। गर्मी सीजन में फरवरी के मध्य से मार्च के अंत तक।

बीज की मात्रा

उड़द की खेती के लिए 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।

बुवाई

बीज को 3-4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखें।

सिंचाई प्रबंधन

उड़द की खेती के लिए 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें। दूसरी सिंचाई फूल आने के समय करें। तीसरी सिंचाई फलियां बनने के समय करें। चौथी सिंचाई फसल पकने के समय करें।

प्रमुख रोग और लक्षण

झुलसा रोग होने पर पत्तियों और तने पर भूरे धब्बे होने लगते हैं। फली छेदक कीट लगने पर फलियों में छेद हो जाते हैं। पत्ती धब्बा रोग होने पर पत्तियों पर भूरे धब्बे हो जाते हैं। चूर्णी फफूंद रोग से पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा जम जाता है।

फसल की कटाई

फसल के पकने के बाद पौधे पीले पड़ने लगते हैं। फली में दाने काले और कठोर हो जाते हैं। कटाई के बाद फसल को धूप में सुखाएं और फिर थ्रेसिंग करें।

उपज

सामान्य परिस्थितियों में उड़द की उपज 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। उन्नत किस्मों के उपयोग और उचित प्रबंधन से उपज 15-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है।

उड़द की खेती करने पर किसानों को रोग प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। समय-समय पर फसल की निगरानी करते रहना चाहिए। ऐसा करके किसान अपनी उपज बढ़ा सकते हैं। उड़द की खेती से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और किसानों को अच्छी आय भी मिलती है। ऐसी ही और जानकारी के लिए जुड़े रहिए https://ebijuka.com/ से।

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