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भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ लगभग 60% आबादी कृषि पर निर्भर है। खेती न केवल लोगों का पेट भरती है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, परंपरा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी है। परंतु पिछले कुछ दशकों में एक ऐसा संकट उत्पन्न हुआ है, जिसने इस आधार को हिला कर रख दिया है — वह है जलवायु परिवर्तन

बदलते मौसम के कारण देशभर में फसलों की पैदावार घट रही है, खेत बंजर हो रहे हैं और किसानों की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। यह लेख इसी संकट की गहराई को समझने, कारणों को पहचानने और समाधान तलाशने की एक गंभीर कोशिश है।

जलवायु परिवर्तन: क्या है यह संकट?

जलवायु परिवर्तन यानी वातावरण में लंबे समय तक मौसम में आने वाले बदलाव। यह प्राकृतिक रूप से भी होता है, लेकिन वर्तमान समय में मानव गतिविधियों, जैसे कि अत्यधिक औद्योगिकीकरण, पेड़ों की कटाई, वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण, और कार्बन उत्सर्जन ने इस प्रक्रिया को बहुत तेज़ कर दिया है।

इसका नतीजा है:

  • औसत तापमान में वृद्धि
  • वर्षा के पैटर्न में बदलाव
  • अधिक बाढ़, सूखा, तूफान, और ओलावृष्टि की घटनाएं

बदलते मौसम का खेतों पर गहरा असर

1. फसल चक्र में गड़बड़ी

  • धान, गेहूं, सरसों जैसी फसलें जो एक निश्चित मौसम में बोई और काटी जाती हैं, अब अनिश्चित मौसम के कारण समय पर तैयार नहीं हो पा रही हैं।
  • इससे उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

2. मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट

  • अत्यधिक वर्षा से मिट्टी का कटाव होता है और उसके पोषक तत्व बह जाते हैं।
  • सूखे से मिट्टी कठोर हो जाती है और उसमें जैविक क्रियाएं रुक जाती हैं।

3. जल संकट और सिंचाई की समस्या

  • कम बारिश और गिरते भूजल स्तर के कारण सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा।
  • इससे रबी और खरीफ दोनों मौसम की फसलें प्रभावित हो रही हैं।

4. नए कीट और रोग

  • तापमान और आर्द्रता में बदलाव के कारण फसलों में नए रोग और कीट तेजी से फैलते हैं।
  • कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग पर्यावरण को और अधिक नुकसान पहुंचा रहा है।

5. आर्थिक संकट और किसान आत्महत्याएं

  • फसल बर्बादी से किसानों को कर्ज़ चुकाने में दिक्कत होती है।
  • आय घटने से कई किसान मानसिक तनाव में आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।

कैसे करें इस संकट का सामना?

इस संकट से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग और सरकार की सहायता शामिल हो।

🔧 समाधान के कदम:

1. जल संरक्षण

  • वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting): घरों, खेतों और गांव स्तर पर जल संग्रह की व्यवस्था।
  • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई: कम पानी में अधिक क्षेत्र की सिंचाई संभव है।

2. फसल विविधता और फसल चक्र

  • केवल गेहूं-धान पर निर्भरता कम करें। दलहन, तिलहन, बागवानी और अन्य फसलों को अपनाएं।
  • एक ही प्रकार की फसल बार-बार न बोएं। इससे मिट्टी को आराम मिलेगा और रोगों का खतरा घटेगा।

3. जलवायु अनुकूल फसलें अपनाएं

  • कम पानी में तैयार होने वाली और सूखा-सहिष्णु फसलों जैसे बाजरा, ज्वार, मूंग, उड़द आदि को बढ़ावा दें।
  • शोध संस्थानों द्वारा विकसित जलवायु-अनुकूल बीजों का उपयोग करें।

4. मिट्टी की जांच और पोषण प्रबंधन

  • प्रत्येक 2–3 वर्ष में मिट्टी की जांच अवश्य कराएं।
  • अधिक रासायनिक खादों की जगह जैविक खाद का प्रयोग करें।

5. तकनीकी जानकारी और प्रशिक्षण

  • ‘मेघदूत’, ‘किसान सुविधा’, ‘पूसा कृषि’ जैसे मोबाइल ऐप से मौसम और कृषि संबंधित जानकारी लें।
  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या कृषि विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण लें।

6. बीमा और सरकारी योजनाओं का लाभ

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, सोलर पंप योजना, पीएम-किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं की जानकारी लें और उनका लाभ उठाएं।

दीर्घकालिक उपाय: भविष्य की खेती

1. सामूहिक खेती और संसाधन साझेदारी

  • छोटे किसान आपस में मिलकर सामूहिक रूप से खेती करें और संसाधन साझा करें।

2. कृषि में नवाचार और अनुसंधान

  • विश्वविद्यालयों और वैज्ञानिक संस्थानों को जलवायु परिवर्तन पर आधारित बीज और तकनीक विकसित करने में सहयोग दें।

3. सतत और जैविक खेती की ओर कदम

  • पर्यावरण-संवेदनशील खेती अपनाएं, जिसमें कीटनाशकों और रासायनिक खादों का न्यूनतम प्रयोग हो।

4. कृषि को व्यवसायिक दृष्टि से देखें

  • खेती को पारंपरिक कार्य नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित व्यवसाय मानकर उसकी योजना बनाएं।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन एक सच्चाई है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। बदलते मौसम ने खेती को कठिन बना दिया है, लेकिन समाधान भी हमारे पास हैं। यदि हम जागरूकता, तकनीक और सहयोग की भावना के साथ आगे बढ़ें, तो इस संकट से न केवल उबर सकते हैं, बल्कि खेती को और भी सशक्त बना सकते हैं। जानिए कैसे: https://ebijuka.com

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