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होली के आसपास बसंत की मादक बयार धरती पर अपनी छटा बिखरने लगती है। पेड़ों पर नई कोपलें झूमने लगती हैं और खेतों में सरसों की पीली चादर बिछ जाती है। गांव के बच्चे आम के बौर की खुशबू से मदहोश होकर बागों में दौड़ने लगते हैं। यह संकेत होता है कि होली का त्यौहार आने वाला है। इसके अलावा पलाश के फूल भी होली आने का संकेत देते हैं। इस दौरान पलाश के पेड़ अपनी छटा बिखेरनी शुरू कर देते हैं। लाल-नारंगी रंग के सुंदर फूल पेड़ों की शाखाओं पर ऐसे खिल उठते हैं जैसे आग की लपटें हों। इन फूलों की रंगत से ऐसा लगता है जैसे पूरा बाग उत्सव की तैयारी कर रहा हो। गांव के बुजुर्ग कहा करते हैं कि जब पलाश के फूल खिलते हैं, तो समझो होली आने वाली है। यह फूल सिर्फ बसंत के मौसम में ही खिलते हैं और इनके खिलते ही गांव में होली की तैयारियां शुरू हो जाती थीं।

किसानों की होली
होली का त्योहार पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन किसानों के लिए होली का उत्सव एक विशेष महत्व रखता है। होली का आगमन किसानों के लिए सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि एक नए जीवन, नई उम्मीदों और अच्छी फसल की खुशी का प्रतीक होता है। जब खेतों में सरसों के पीले फूल लहलहाने लगते हैं, गेहूं की बालियां पकने लगती हैं और आम के पेड़ों पर बौर आ जाता है, तो किसानों को लगता है कि उनकी मेहनत रंग लाने वाली है। होली का त्योहार फसल पकने के समय आता है। गेहूं, चना और सरसों की फसल लगभग तैयार हो चुकी होती हैं। किसान अपनी मेहनत का फल देखकर खुश होते हैं। खेतों में सुनहरी बालियों को देखकर उनके चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। इस खुशी को वे होली के रंगों के साथ मनाते हैं। होली के दिन से पहले गांव में ढोल और मंजीरे बजने लगते हैं। होली से एक दिन पहले “होलीका दहन” का आयोजन होता है। गांव के बुजुर्ग और किसान मिलकर खेतों से लकड़ियां और उपले लाते हैं। होली के दिन एक-दूसरे को बधाई देते हैं और रंग लगाते हैं।

फसलों की होली
आज के आधुनिक दौर में भी कई गांवों में प्राकृतिक रंगों और फसलों से रंग बनाकर होली खेती जाती है। किसान भाई विभिन्न रंग बनाने के लिए सरसों, पलाश, पालक आदि फसलों का उपयोग करते हैं। पलाश के फूल केसरिया और लाल रंग के लिए, चुकंदर गुलाबी रंग के लिए, हल्दी पीले रंग के लिए, पालक और नीम की पत्तियां हरे रंग के लिए उपयोग की जाती हैं। इन रंगों से खेलने पर त्वचा को नुकसान नहीं होता। यह प्रकृति के प्रति सम्मान का भी प्रतीक होता है। इसलिए गांवों में कहा जाता है –

पलाश के रंग से रंग लो पिचकारी,
फसलों की होली है सबसे प्यारी।

होली और खेती का संबंध
होली केवल रंगों और उमंग का त्योहार नहीं है, बल्कि यह खेती-किसानी से भी जुड़ा हुआ है। इस समय रबी की फसलें पकने लगती हैं और किसान अपनी मेहनत के फलों को देखने के लिए उत्साहित रहते हैं। खेतों में लहलहाती फसलें और पकती हुई बालियां किसानों के मन में एक नई ऊर्जा और उमंग भर देती हैं। होली इस बात का प्रतीक होती है कि फसलें अब तैयार हो रही हैं और जल्द ही कटाई शुरू होगी। किसान इस खुशी को रंगों के माध्यम से मनाते हैं और अपने खेतों में अच्छी पैदावार के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं।

फसलों की हरियाली से रंगी होली,
किसानों के दिल में बसी ये ठिठोली।
मेहनत के रंग से भर दो आंगन,
फसलों की खुशबू से महके जीवन।

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